कई बार ऐसा होता है कि कोई सरकारी कंपनी या सार्वजनिक क्षेत्र का कोई उद्यम या कोई निजी कंपनी घाटे में चल रही होती हैं, जिसके कारण उसका प्रबंधन मंडल या सरकार उसमें से अपनी हिस्सेदारी कम करके उसको किसी अन्य निवेशक को बेच देता है, इसे Disinvestment कहा जाता है।
बहुत-सी बार आप यह सुनते होंगे कि सरकार ने किसी कंपनी का Disinvestment कर दिया है, उस स्थिति में आम इंसान के लिए जिसको इतना वित्तीय ज्ञान नहीं होता है, उसके लिए समझना मुश्किल हो सकता है कि Disinvestment Meaning क्या होता है।
इसलिए आप लोगों की बेहतर समझ के लिए हमने इस लेख में आपको Disinvestment Meaning तथा इसके प्रकार Types of Disinvestment के बारे में विस्तार से बताया है। साथ ही इसके संबंध में भारत सरकार की क्या-क्या नीतियां Disinvestment Policy of Government of India है और भारत में पहले कब-कब विनिवेश Disinvestment Examples in India हुए हैं, यह भी हमने आपको इस लेख में बताया है।
Disinvestment Meaning | Disinvestment Ka Matlab Kya Hai?
किसी ऑर्गेनाइजेशन या सरकार द्वारा किसी कंपनी, subsidiary या किसी संपत्ति(asset) को बेचने या उसके स्टॉक्स का liquidation करने की प्रक्रिया को ‘Disinvestment’ कहते हैं।
Disinvestment का हिंदी में मीनिंग होता है ‘विनिवेश’, यानी किसी भी संपत्ति या कंपनी में से अपने निवेश को कम करना।
Disinvestment को Divestment या Divestiture भी कहा जाता है।
Disinvestments ज्यादातर मामलों में, मुख्य रूप से अधिकतम रिटर्न देने के लिए संसाधनों के अनुकूलन से प्रेरित होते हैं। इस उद्देश्य को प्राप्त करने के लिए Disinvestment बिक्री, स्पिनिंग ऑफ या capital expenditures को कम करने का रूप भी ले सकता है। राजनीतिक या कानूनी कारणों से भी विनिवेश किया जा सकता है।
सरकारे आमतौर पर केंद्र और राज्य के सार्वजनिक क्षेत्र के उद्यमों, कंपनियों या अन्य किसी अचल संपत्ति का Disinvestment करती हैं।
सरकार यह विनिवेश सरकारी खजाने पर राजकीय बोझ को कम करने या देश की किसी विशिष्ट जरूरतों को पूरा करने के लिए आवश्यक धन जुटाने के लिए कर सकती है। कभी-कभी जब कोई भी सरकारी कंपनी या सार्वजनिक क्षेत्र का उद्यम बहुत ज्यादा नुकसान में चल रहा होता हैं और सरकार को कोई मुनाफा नहीं दे रहा होता हैं, तो सरकार उस स्थिति में उस कंपनी को किसी निजी कंपनी को बेच करके उसका विनिवेश कर देती है।
कई बार ऐसा होता है कि किसी कंपनी का कोई विशेष उपक्रम या विशेष यूनिट घाटे में चल रहा होता है, जबकी पूरी कंपनी मुनाफे में चल रही होती है। उस स्थिति में सरकार या उस कंपनी का प्रबंधन उस विशेष इकाई का Disinvestment कर देता है, ताकि उसके कारण पूरी कंपनी के वित्तीय आंकड़ों पर कोई नकारात्मक प्रभाव ना पड़े।
कुछ मामलों में, सरकार की कुछ नीतियों के कारण किसी विशेष व्यवसाय में विनिवेश की आवश्यकता हो सकती है। कोई देश अपनी व्यापार नीति को बदल सकता है या आवश्यक सामग्री या घटकों के आयात पर अंकुश लगा सकता है। नीति में बदलाव उस कम्पनी के व्यवसाय को अव्यवहार्य बना सकता है, जिसके परिणामस्वरूप हिस्सेदारी या स्वामित्व की बिक्री हो सकती है। अन्य मामलों में, नीति बदलाव व्यवसाय को प्रभावित कर सकता है और इसलिए उस व्यवसाय के परिसमापन(Disinvestment) की आवश्यकता होती है।
Types of Disinvestment | Disinvestment Ke Prakar
सरकार के दृष्टिकोण से, निम्न 3 प्रकार के Types of Disinvestment होते हैं:
- Minority Disinvestment
- Majority Disinvestment
- Strategic Disinvestment
- Complete Disinvestment
Minority Disinvestment
Minority Disinvestment में सरकार किसी भी कंपनी की बहुत कम हिस्सेदारी को बेचती है और अपनी हिस्सेदारी को अधिक(51 प्रतिशत के बराबर या उससे अधिक) रखती है, ताकि उस कंपनी पर सरकार का प्रबंधकीय नियंत्रण बना रहे।
सरकार ऐसा इसलिए करती है क्योंकि सार्वजनिक क्षेत्र के उद्यम देश के नागरिकों की जरूरतों को पूरा करते हैं, इसलिये सरकार को आम जनता के हितों को आगे बढ़ाने के लिए कंपनी की नीतियों से संबंधित निर्णय लेने के लिए प्रभावी स्थिति में होना जरूरी है।
इसलिए सरकार ऐसी कंपनी के विनिवेश के लिए अपनी बहुत कम हिस्सेदारी की नीलामी करती है।
Majority Disinvestment
Majority Disinvestment में सरकार कम्पनी में अपनी बहुमत हिस्सेदारी बेच देती है।
विनिवेश के बाद सरकार के पास कंपनी में अल्पमत हिस्सेदारी रह जाती है। ऐसा निर्णय strategic grounds और सरकार की नीतियों पर आधारित होता है।
कंपनी का Majority Disinvestment करने के बाद सरकार के पास कंपनी में प्रबंधकीय नियंत्रण नहीं रहता है
Strategic Disinvestment
Strategic Disinvestment के अंतर्गत सरकार आमतौर पर एक गैर-सरकारी, निजी संस्था को PSU में अपनी हिस्सेदारी बेचती है। ऐसा करने के पीछे सरकार का उद्देश्य एक गैर-निष्पादित संगठन के स्वामित्व को बाजार में अधिक व्यापार कुशल निजी कम्पनीयो को हस्तांतरित करना और सरकारी बैलेंस शीट पर वित्तीय भार को कम करना होता है।
Complete Disinvestment
Complete Disinvestment में सरकार PSU की 100% हिस्सेदारी निजी कंपनी को बेच देती है, जिससे कंपनी का निजीकरण हो जाता है और सरकार का उस PSU से नियंत्रण हट जाता है।
Disinvestment Policy of Government of India
Department of Disinvestment भारत के वित्त मंत्रालय के अधीन एक स्वतंत्र विभाग है, जो भारत सरकार के लिए विनिवेश से संबंधित सभी कार्यो को संपादित करता है।
10 दिसंबर 1999 को, Department of Disinvestment को एक अलग विभाग के रूप में स्थापित किया गया था, लेकिन 2016 में भाजपा सरकार ने इसका नाम बदलकर Department of Investment and Public Asset Management (DIPAM) कर दिया।
हमारे देश के विनिवेश लक्ष्य प्रत्येक केंद्रीय बजट के तहत निर्धारित किए जाते हैं, और हर साल ये लक्ष्य बदलते रहते हैं। विनिवेश लक्ष्य बढ़ाया जाए या नहीं, इस पर अंतिम फैसला केंद्र सरकार करती है।
FY22 के लिये 1.75 लाख करोड़ रुपये के विनिवेश लक्ष्य निर्धारित किये गये थे।
1990 के दशक के उत्तरार्ध से, Disinvestment लगातार सरकारों के तहत केंद्रीय बजट की लगभग नियमित विशेषता बन गया है, जो प्रत्येक वर्ष सार्वजनिक क्षेत्र के उद्यमों में सरकार की हिस्सेदारी की बिक्री करके सरकार के लिये धन जुटाने का लक्ष्य निर्धारित करता है।
देश के राजस्व लक्ष्यों को पूरा करने के मामले में विनिवेश से सरकारों को बहुत अच्छे परिणाम मिले हैं।
DIPAM मुख्य रूप से सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रमों(PSU’s) में केंद्र सरकार के equity stake के प्रबंधन और वित्त मंत्रालय द्वारा निर्धारित वार्षिक लक्ष्यों के अनुसार विनिवेश की गतिविधियों का संचालन करने के उद्देश्य से बनाया गया है।
Main Objectives of Disinvestment in India
भारत में सरकारों द्वारा किसी कंपनी के विनिवेश करने के निम्नलिखित मुख्य उद्देश्य Main Objectives of Disinvestment in India होते हैं:
- सरकार पर loss-making PSUs के द्वारा पडने वाले वित्तीय भार को कम करना।
- विनिवेश से प्राप्त होने वाले पैसे को देश के विकास कार्यों में लगाना।
- निजी कंपनियों को PSU के क्षेत्र में निवेश करने के लिए प्रोत्साहित करना।
- घाटे में चल रही कंपनियों से अपना पैसा निकाल कर ऐसी कंपनियों में लगाना जो अधिक सस्ते उत्पादन करती हो और देश के विकास में योगदान देती हो।
- खराब प्रदर्शन करने वाली फर्मों के निवेश पर प्रतिफल(ROI) में सुधार करना।
Means of Disinvestment in India
सरकार द्वारा किसी भी सरकारी उपक्रम या सार्वजनिक क्षेत्र की किसी कंपनी में Disinvestment करने के कुछ तरीके Means of Disinvestment in India होते हैं, जिनके द्वारा सरकार उस कंपनी में अपनी हिस्सेदारी कम कर लेती है और अपनी हिस्सेदारी में से कुछ हिस्सेदारी निजी निवेशकों को बेच करके उनसे पैसा लेती है।
ये Means of Disinvestment in India निम्नलिखित होते हैं:
Initial Public Offering (IPO)
आईपीओ के अंतर्गत सरकार किसी कंपनी के कुछ शेयर जारी करती है और उस कंपनी को शेयर मार्केट में लिस्ट कराती है, जहां से निवेशक उसमें पैसा निवेश करते हैं।
Follow On Public Offer (FPO)
अगर कोई सरकारी कंपनी पहले से ही शेयर बाजार में लिस्टेड है, तो सरकार उसके कुछ नए शेयर जारी करती है और मौजूदा निवेशकों को उसके शेयर खरीदने और उस कंपनी में निवेश करने के लिए कहती है।
Institutional Placement
इसके अंतर्गत सरकार कुछ financial institutions को नीलामी के जरिए किसी कंपनी विशेष में अपनी हिस्सेदारी बेचती है।
Exchange-Traded Funds (ETFs)
सरकार ETF के घटक बनने वाले कई sectors और कंपनियों में एक साथ शेयरधारिता का मुद्रीकरण करती हैं।
उदाहरण के लिए, Bharat-22 एक ETF है, जिसमें 22 कंपनियां(19 PSUs) शामिल हैं, जिनमें सरकार की हिस्सेदारी है।
Cross-holding
इसके अंतर्गत ऐसी सार्वजनिक क्षेत्र की कंपनियां(PSUs) जो पहले से ही शेयर मार्केट में लिस्टेड है, वह किसी अन्य PSU में सरकार की हिस्सेदारी खरीद लेती है।
Disinvestment Examples in India
Air India Disinvestment
भारत सरकार ने Air India के Disinvestment के लिए 76% हिस्सेदारी बेचने के लिए 2018 में bid निकाली थी, लेकिन उस समय किसी ने यह हिस्सेदारी नहीं खरीदी।
फिर दोबारा 2022 में भारत सरकार ने इसके लिए bid निकाली थी। इस बार यह bid भारत सरकार ने इसके 100% Disinvestment के लिए निकाली थी।
इस Air India Disinvestment के द्वारा भारत सरकार Air India में अपनी 100% हिस्सेदारी तथा Air India Express Limited और Air India SATS Airport Services को भी बेच रही थी।
बाद में टाटा ग्रुप ने एयर इंडिया को भारत सरकार से खरीद लिया था।
Life Insurance Corporation of India Disinvestment
भारत सरकार ने इस साल 2022 में ही देश की सबसे बड़ी बीमा कंपनी Life Insurance Corporation of India (LIC) में विनिवेश की घोषणा की थी।
LIC के पास बीमा क्षेत्र का 69% market share हैं। LIC के Disinvestment का मामला थोड़ा पेचीदा है, क्योंकि भारत सरकार के स्वामित्व वाली बीमा कंपनी LIC में विनिवेश LIC Act में संशोधन किये बिना नहीं हो सकता हैं।
मीडिया खबरों के मुताबिक, भारत सरकार LIC में 25% हिस्सेदारी बेचना चाह रही है। हालाँकि, 25% बिक्री बहुत से चरणों में की जाएगी।
पहले चरण में केवल 5% हिस्सेदारी ही बेची जाएगी। जिससे सरकार 50,000 करोड़ रुपए से अधिक जुटाने की उम्मीद कर रही है।
भारत सरकार ने Deloitte और SBI Capital markets को इस विनिवेश प्रक्रिया के पहले चरण के संपादन की जिम्मेदारी सौंपी है।
BPCL Disinvestment
भारत सरकार ने नवंबर 2019 में 5 सार्वजनिक क्षेत्र की इकाइयों (PSU’s) के विनिवेश की घोषणा की थी, जिसमें भारत पेट्रोलियम कॉर्पोरेशन ऑफ इंडिया (BPCL) और शिपिंग कॉरपोरेशन ऑफ इंडिया (SCI) में majority stake को बेचना शामिल था।
इन दो PSU’s के साथ ही, भारत सरकार ने Container Corporation of India (CONCOR) में अपनी 31% हिस्सेदारी बेचने की योजना की भी घोषणा की थी।
यहाँ ध्यान देने लायक बात ये है की केंद्र सरकार BPCL में अपनी पूरी 52.98% हिस्सेदारी बेचना चाह रही है।
Shipping Corporation of India (SCI) Disinvestment
भारत सरकार ने 22 दिसंबर 2020 को management control के हस्तांतरण के साथ-साथ SCI में अपनी 63.75% हिस्सेदारी बेचने के लिए bids आमंत्रित कीं थी।
Disinvestment v/s Privatisation
Disinvestment और Privatisation, इन दोनों शब्दों का परस्पर उपयोग किया जाता है। कई बार हम समझते हैं कि इन दोनों का अर्थ एक समान ही होता है, हालाँकि इन दोनों के बीच थोड़ा-सा अंतर है, जो निम्नलिखित हैं:
Privatisation
सरकारी कंपनियों या सार्वजनिक क्षेत्र की कंपनियों (PSU) का मालिकाना हक सरकार के पास होता है। इसलिए इनके संचालन का नियंत्रण भी सरकार के पास ही होता है। सरकार जब भी चाहे किसी निजी निवेशक या निवेशकों के समूह को कोई भी सरकारी कंपनी या उसकी हिस्सेदारी बेच सकती है।
अगर सरकार उस पूरी कंपनी को या उसकी आधे से ज्यादा हिस्सेदारी को किसी निजी निवेशक को बेचती है, तो उस स्थिति में इसे ‘निजीकरण’ या ‘Privatisation’ कहा जाता है।
Privatisation किये जाने पर उस कंपनी का स्वामित्व और नियंत्रण करने की शक्ति सरकार के पास नहीं रहती है, यह उस कंपनी के पास चली जाती है जिसने उसे खरीदा है।
हालांकि सरकार ज्यादातर मौकों पर ऐसा करने से बचती है और सार्वजनिक क्षेत्र की कंपनियों में अपनी आधे से अधिक हिस्सेदारी रखती है, ताकि उस कंपनी का नियंत्रण सरकार के हाथों में रहे। लेकिन जब ऐसा नहीं होता है, तो स्वामित्व निजी क्षेत्र को हस्तांतरित कर दिया जाता है, जिसके परिणामस्वरूप निजीकरण होता है।
इसे majority disinvestment या complete privatisation भी बोला जाता है जिसमें किसी कंपनी का 100% नियंत्रण निजी क्षेत्र के पास चला जाता है।
Disinvestment
वही इसके विपरीत, जब सरकार किसी कंपनी का Disinvestment करती है, तो इसका मतलब होता है कि सरकार उस कंपनी में अपनी कुछ हिस्सेदारी कम कर रही है।
सरकार यह Disinvestment उस कंपनी में वापस निवेश करने के इरादे के बिना करती है।
यह विनिवेश आमतौर पर कुछ व्यवसायिक गतिविधियों या किसी राजनीतिक दबाव से निपटने के लिए अस्थाई रूप से किया जाता है या अगर वह कंपनी लगातार नुकसान दिए जा रही हो तो भी सरकार Disinvestment के फैसले ले लेती है।
Conclusion
आज के इस लेख में हमने आपको Disinvestment Meaning तथा इस से संबंधित अन्य सभी पहलूओ के बारे में बताया है।
कंपनियां अपने वित्तीय, राजनीतिक, कानूनी या रणनीतिक कारणों से अपनी इकाइयों या कंपनियों का विनिवेश करती है। इसके साथ ही जो कंपनियां लाभदायक नहीं होती है, सरकार उनका भी विनिवेश कर देती है।
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FAQs
Disinvestment और Privatisation में क्या अंतर होता हैं?
जबकि Privatisation वह प्रक्रिया होती है जब किसी सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रम को सरकार किसी निजी क्षेत्र की कंपनी को पूरी तरह से बेच देती है।